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Thu. Apr 10th, 2025

सैकड़ो शिकायतें सिर्फ एक पर कार्यवाही, स्वास्थ्य सिस्टम में सुधार या कमीशन में कमी ?

साभार – नवभारत

बिलासपुर (सैय्यद निजामुद्दीन) – आज सरसरी निगाहों से अखबार के पन्ने पलट रहा था कि अचानक एक खबर पर नजर पड़ी जिस पर लिखा था ऑपरेशन पर बैन। जी हां मैं जिस खबर की बात कर रहा हूं वह खबर है बिलासपुर के एसकेबी हॉस्पिटल की जहां पर कुछ दिनों पूर्व एक महिला की ऑपरेशन किया गया था इसके बाद उसकी हालत गंभीर हो गई थी और उसे अपोलो रेफर किया गया था स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है। ऑपरेशन के बाद तबीयत में और खराबी आने के बाद परिवार वालों ने एसकेबी हॉस्पिटल को दोषी ठहराया और ऑपरेशन करने में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए स्वास्थ्य विभाग में सीएमएचओ के समक्ष लिखित में शिकायत आवेदन दिया। इसके बाद सीएमएचओ प्रमोद तिवारी ने तुरंत टीम गठित कर जांच करवाया की जिसमें यह पाया गया कि अस्पताल के ऑपरेशन कक्ष में बहुत सारी खामियां और कमियां है और ऑपरेशन कक्ष मानक के अनुरूप नहीं है। जिसमें चेंजिंग रूम स्क्रब क्षेत्र मानक अनुरूप नहीं पाया गया स्टेरलाइजेशन कक्ष (भंडार) स्टोर ऑपरेशन पश्चात रिकवरी रूम सही नहीं मिला ओटी का कल्चर रिपोर्ट एवं फ्यूमिगेंशन रिकार्ड व्यवस्थित नहीं था साथ ही छत्तीसगढ़ पैरामेडिकल काउंसिल से पंजीकृत पूर्णकालिक ओटी टेक्नीशियन नहीं था और पैरामेडिकल स्टाफ नहीं है सीएमएचओ डॉ तिवारी ने ओटी की कमियों को सुधार करते हुए साइंस संस्थान से ओटी कल्चर टेस्ट करने की निर्देश दिए हैं इसके बाद ही ओटी प्रारंभ करने की अनुमति दी जाएगी।
सवाल यह उठता है किस शहर में हर गली मोहल्ले में कहीं ना कहीं ट्रॉमा सेंटर,हॉस्पिटल ओपीडी खुले हुए हैं जो कि किसी भी तरह से मानक पर खड़े नहीं उतरते हैं इसको लेकर के कई बार शिकायत की गई कई बार खबरों में यह देखा गया कि ऑपरेशन या इलाज के दौरान मौतें भी हुई है। जांच टीम गठित भी की गई कार्यवाही के नाम पर सिर्फ लीपापोती, तो कही पर जांच के नाम पर आंख मूंद लिया गया। मोटा कमीशन, रसूख़ और मंत्री लेबल की पहचान के कारण आज भी ऐसे सैकड़ो आवेदन धूल खा रहे हैं जिन पर कार्यवाही की जरूरत है। शहर के इस छोर से लेकर उसे छोर तक सैकड़ो छोटे-छोटे क्लीनिक हॉस्पिटल है जो की मानक पर नहीं है किंतु कमीशन का खेल इतना तगड़ा है की इनका संचालन धड़ल्ले से चलता रहता है। इसके पीछे किसका हाथ है यह छुपा नहीं है नर्सिंग होम एक्ट के नाम का उपयोग गलत तरीके से किया जा रहा है नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती है। इसके एवज़ में मोटी रकम कमीशन के तौर पर विभाग में पहुंच जाता है और हॉस्पिटल वाले अपनी मनमर्जी चलाते है। अस्पतालों से ज्यादा स्वास्थ्य विभाग में नर्सिंग होम एक्ट की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है। ऐसा क्यों है की हर शिकायत या जाँच पर अस्पतालों को क्लीन चिट दे दिया जाता है?

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