रतनपुर: धर्मनगरी रतनपुर, जो कल्चुरी काल के प्राचीन राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है, में कल्चुरी कलार समाज द्वारा रंग पंचमी के पावन अवसर पर भव्य होली मिलन समारोह आयोजित किया गया। इस आयोजन में समाज के सभी वर्गों ने बड़े हर्षोल्लास और उल्लास के साथ हिस्सा लिया, और एकजुट होकर अपनी संस्कृति और परंपराओं को मनाया। यह आयोजन प्रतिवर्षानुसार इस बार भी समाज के सैकड़ों सदस्य उपस्थित होकर सम्पन्न हुआ।
समारोह की शुरुआत समाज के लोगों ने अपनी कुलदेवी मां महामाया देवी और इष्टदेव भगवान सहस्त्रबाहु जी की पूजा-अर्चना करके की। पूजा स्थल पर मां महामाया देवी और भगवान सहस्त्रबाहु जी की आराधना के बाद, समाज के लोगों ने मिलकर नगाड़े और मादर–मृदंग के साथ फाग गीत गाए, जिससे वातावरण में होली की धूम मच गई। हर कोई रंगों में रंगा हुआ था और होली की मस्ती में डूबा हुआ था।
समारोह में विशेष रूप से रतनपुर नगर के सभी कल्चुरी कलार परिवारों के सदस्य पहुंचे, जहां महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। समाज के सभी लोग एक साथ मिलकर विभिन्न पारंपरिक गीतों और नृत्य के माध्यम से होली के उत्सव को मनाते हुए न केवल आनंदित हुए, बल्कि आपसी भाईचारे और सौहार्द को भी प्रदर्शित किया।
इस आयोजन में रंग, उमंग और खुशी का माहौल था, जिसमें हर आयु वर्ग के लोग शामिल हुए। बच्चों ने अपनी मासूमीयत के साथ होली के गीतों और खेलों का आनंद लिया, वहीं महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य में भाग लिया। पुरुषों ने भी इस अवसर पर फाग गीतों का साथ दिया और एक दूसरे के साथ रंगों का आदान-प्रदान किया। समाज के वरिष्ठ सदस्य इस समारोह को देखते हुए आशीर्वाद देने के लिए मौजूद रहे, और उन्होंने इस आयोजन के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की महत्ता को उजागर किया।
कल्चुरी कलार समाज का यह होली मिलन समारोह न केवल एक रंगीन उत्सव था, बल्कि यह समाज की एकता, समरसता और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का एक बेहतरीन उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। इस आयोजन में हर कोई एक दूसरे के साथ सामूहिक रूप से रंगों में रंगकर और पारंपरिक गीतों के साथ होली की खुशियां मनाता हुआ नजर आया।
समाज के लोगों ने यह सुनिश्चित किया कि यह आयोजन न केवल आनंद और उल्लास का प्रतीक बने, बल्कि यह उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी समर्पित हो, जो आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके। कल्चुरी कलार समाज के इस होली मिलन समारोह ने रतनपुर को एक बार फिर अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक उत्सवों के लिए गर्वित किया।
